Desi Kahani – सूरज ढलने को था। खेतों में काम कर लौटते किसान अपनी थकी हुई चाल से घर की ओर बढ़ रहे थे। गाँव के कुएँ के पास बच्चों की किलकारियाँ गूँज रही थीं।
हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली थी, और आकाश में लालिमा छा रही थी। उस समय, पगडंडी पर सरिता अकेली चल रही थी। उसके हाथों में दूध की बोतल और ताजी सब्जियाँ थीं, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था।
सरिता गाँव की एक साधारण लड़की थी। उसकी सुंदरता उसकी सादगी में झलकती थी। हर सुबह सूरज की पहली किरण के साथ वह खेतों में काम करने चली जाती। उसके दिन खेतों, पशुओं, और अपने छोटे से घर के काम में गुजरते। लेकिन उसकी आँखों में एक सपना था।
पास के गाँव से दीपक, जो कभी-कभार अपने मामा के घर आया करता था, सरिता के दिल में एक अलग जगह बना चुका था।
दीपक शहर में पढ़ाई करता था, और हर बार गाँव लौटकर वह अपने मामा के खेतों की देखभाल करता। उसकी सादगी और हंसी में कुछ ऐसा था, जो सरिता के दिल को छू जाता था।
एक दिन, सरिता अपने खेत में काम कर रही थी। उसने दूर से देखा कि दीपक मामा के खेत में बैल चलाने में मदद कर रहा था। वह अपने काम में इतना खोया हुआ था कि उसे सरिता की मौजूदगी का अंदाज़ा भी नहीं हुआ।
सरिता ने मुस्कुराते हुए सोचा, “कितना सरल और मेहनती लड़का है।”
शाम को, जब वह गाँव के कुएँ के पास पानी भरने गई, दीपक वहीं पास में बैठा बांसुरी बजा रहा था। उसकी धुन में एक गहरी उदासी और एक अनकही खुशी छिपी हुई थी।
सरिता ने धीमे कदमों से उसके पास जाकर कहा,“बड़ी प्यारी धुन है। यह तुमने कहाँ सीखी?”
दीपक ने उसे देखकर हल्का-सा मुस्कुराते हुए कहा,
“गाँव के पेड़ों से, हवा से, और इस मिट्टी से। ये सब सिखा देते हैं, अगर हम सुनना चाहें।”
सरिता को उसका जवाब अजीब लगा, लेकिन उसकी बातों में एक गहराई थी, जो उसे भा गई। वह दिन उनकी दोस्ती का पहला दिन था।
समय बीतने के साथ, दीपक और सरिता की मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी खेतों में काम करते समय, तो कभी गाँव के मेले में, दोनों हर जगह एक-दूसरे की मौजूदगी महसूस करते।
दीपक ने एक दिन सरिता से कहा,
“सरिता, तुम बहुत खास हो। तुम्हारी बातों में एक सादगी है, जो शहर में कहीं नहीं मिलती। यहाँ की मिट्टी, ये गाँव, और तुम—सब मुझे अपना-सा लगता है।”
सरिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
“शहर में सबकुछ तो है। फिर भी तुम्हें यहाँ की सादगी क्यों अच्छी लगती है?”
दीपक ने गंभीर होकर कहा,
“क्योंकि सादगी में सच्चाई है। यहाँ हर चीज़ असली है, दिखावा नहीं। और तुम्हारी मुस्कान… वो तो इस गाँव की सबसे सुंदर चीज़ है।”
सरिता का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसने कुछ नहीं कहा, बस दीपक की ओर देखा। उस नजर में जो भाव था, उसने दोनों के दिलों को और करीब ला दिया।
गाँव में सालाना मेला लगा। लोग बड़े उत्साह से तैयारियों में जुटे थे। हर तरफ चहल-पहल थी। दीपक ने सरिता को मेले में चलने के लिए कहा। सरिता पहले झिझकी, लेकिन फिर राज़ी हो गई।
मेले में दोनों ने साथ घूमते हुए हर छोटे-बड़े पल का आनंद लिया। गुब्बारे, मिठाइयाँ, खिलौने, और बांसुरी बेचने वाले दुकानदारों के बीच, दीपक ने एक बांसुरी खरीदी और सरिता को दी।
“यह तुम्हारे लिए है। जब भी अकेला महसूस करो, इसे बजाना। यह तुम्हारे दिल की बात कहेगी,” उसने कहा।
रात के समय, मेले की रौनक और भी बढ़ गई। गाँव के बीच में दीपक ने बांसुरी बजाना शुरू किया। उसकी धुन में प्रेम और अपनापन छलक रहा था।
सरिता की आँखें छलक आईं। उसने धीमे स्वर में कहा,“दीपक, तुम मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत चीज़ हो। मैं नहीं जानती कि यह क्या है, लेकिन जब तुम पास होते हो, तो हर मुश्किल आसान लगती है।”
दीपक ने सरिता का हाथ थामते हुए कहा,
“मैं भी यही महसूस करता हूँ, सरिता। तुम्हारे बिना सब अधूरा है। क्या तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी?”
सरिता ने सहमति में सिर हिला दिया। दोनों ने अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो दिया, और यह उनकी प्रेम कहानी का सबसे खूबसूरत पल था।
लेकिन उनकी कहानी में तूफान आना बाकी था। एक दिन, दीपक बिना कुछ बताए गाँव से चला गया। न कोई ख़बर, न कोई चिट्ठी। सरिता हर दिन पगडंडी पर बैठकर उसका इंतज़ार करती, लेकिन दीपक नहीं लौटा।
गाँव वालों ने तरह-तरह की बातें करनी शुरू कर दीं। कुछ ने कहा, “शहर के लड़के ऐसे ही होते हैं।” तो कुछ ने कहा, “शायद वह कभी लौटे ही न।”
सरिता के दिल में गहरा दर्द था। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह हर शाम उसी जगह जाती, जहां वे दोनों मिला करते थे। वह बांसुरी को अपने पास रखती और कभी-कभी अकेले में उसे बजाती। उसकी धुन में अब इंतजार और दर्द था।
तीन महीने बाद, एक शाम जब सरिता अपने खेत में काम कर रही थी, उसने देखा कि पगडंडी पर कोई चल रहा है। वह भागकर वहाँ पहुँची। यह दीपक था!
उसका चेहरा उतरा हुआ था, आँखों में थकान थी, लेकिन जब उसने सरिता को देखा, तो उसकी आँखों में चमक आ गई। उसने कहा,
“सरिता, मुझे माफ़ कर दो। मेरे परिवार पर अचानक बहुत बड़ी मुसीबत आ गई थी। मेरे पिता बीमार थे, और मुझे उनकी देखभाल के लिए जाना पड़ा।
मैं तुम्हें बताना चाहता था, लेकिन सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि मैं कुछ कह नहीं पाया। लेकिन अब मैं वापस आ गया हूँ, और मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा।”
सरिता की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने कहा, “दीपक, मुझे तुमसे गुस्सा नहीं है। बस एक डर था कि कहीं तुम हमेशा के लिए चले न जाओ। लेकिन अब, जब तुम वापस आ गए हो, मैं खुश हूँ। बस कभी बिना बताए मत जाना।”
दीपक और सरिता ने अपने प्यार को और मजबूत किया। उन्होंने गाँव में साथ रहने और अपने सपनों को पूरा करने का फैसला किया। उनके रिश्ते की सच्चाई और गहराई ने गाँव वालों को भी प्रेरित किया।
नैतिक शिक्षा – इस कहानी से यहीं सीख मिलती है कि सच्चा प्यार मुश्किल समय में भी साथ निभाता है। रिश्तों में भरोसा और समझ सबसे जरूरी है। यह Desi Kahani सिर्फ सरिता और दीपक की प्रेम कहानी नहीं, बल्कि हर उस दिल की कहानी है, जो प्यार और सादगी में विश्वास करता है।