10+ गौतम बुद्ध की कहानियाँ | Gautam Buddha Story in Hindi

gautam buddha story in hindi

आज हम यहाँ आपके लिए गौतम बुद्ध की कहानियों (Gautam Buddha Story in Hindi) का खजाना लेकर आए हैं ताकि आप इन कहानियों के माध्यम से महात्मा बुद्ध द्वारा दिए ज्ञान को अपने जीवन में उतार सकें |

01. अंगुमाल डाकू की कहानी | Gautam Buddha Story in Hindi

भगवान बुद्ध के समय में कोशल राज्य में अंगुलीमाल नाम का एक डाकू रहता था | जिसने सैकड़ों लोगों का खून किया था |

वह जितने लोगों की हत्या की थी | उन सभी की अंगुली काट कर उसे अपनी माला में पिरोकर पहन लेता था, इसलिए उसका नाम अंगुलीमाल पड़ गया |

वह बहुत हीं निर्दयी और क्रूर था | जंगल में जिस ओर उसका इलाका था, लोग उस तरफ जाने से भी डरते थे | राजा ने उसे पकड़ने के लिए कई बार अपनी सेना भेजी मगर सभी असफल रहे |

बुद्ध ने अपनी ज्ञान से यह अनुभव किया कि अंगुलीमाल के मन में कहीं दया व करुणा की भावना सोई हुई है, बस उसे जगाने की आवश्यकता है |

यह सोच बुद्ध उस ओर चल दिए, जंगल में जिस ओर अंगुलीमाल रहता था | लोगों ने बुद्ध को उस ओर जाने से बहुत मना किया मगर वे नहीं रुके |

अंगुलीमाल बुद्ध को अपनी ओर आता देख अपनी तलवार लेकर दौड़ा मगर बुद्ध अपनी स्वाभाविक गति से चलते रहे | उसने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘ठहर जाओ’ – बुद्ध रुक गए |

जब अंगुलीमाल बुद्ध के पास आया तो उन्होंने कहा, ‘मैं तो ठहर गया मगर तू कब ठहरेगा ? तू भी पाप करने से रुक जाओ इसलिए मैं यहाँ आया हूँ कि तू भी सत्य के पथ का अनुगामी बन जाओ | तेरे अंदर पुण्य मरा नहीं है | यदि तू इसे अवसर देगा, तो तुम्हारी काया पलट जाएगी |

भगवान बुद्ध ने अंगुलीमाल से कहा की तुम पेड़ की डाली तोड़कर लाओ | अंगुलीमाल ने पेड़ की टहनी को तोड़ कर बुद्ध के सामने लाया | बुद्ध ने उससे कहा की अब इसे जोड़ो |

अंगुलीमाल बोला – यह कैसे संभव है ? यह मैं नहीं कर सकता | बुद्ध ने अंगुलीमाल से कहा कि जब तुम किसी चीज को जोड़ नहीं सकते, उसे तुम्हें तोड़ने का भी अधिकार नहीं है |

बुद्ध की इस बात में बहुत तेज़ थी | यह सुन कर अंगुलीमाल के रोंगटे खड़े हो गए | उस पर बुद्ध के वचनों का बहुत हीं अच्छा प्रभाव पड़ा | वह शीतल हो गया |

वह भगवान बुद्ध के चरणों में गिर कर माफ़ी की गुहार करने लगा | पहली बार किसी ने उससे इतने प्रेम  भाव से बात की थी |

अंगुलीमाल ने कहा – मुझे माफ़ कर अपना अनुयायी बना लीजिए | मैं इस अनुशासन को स्वीकार करने को तैयार हूँ | उसने अंगुलियों की माला उतार कर फेंक दी और बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा |

वह उसी समय भिक्षु हो गया और कुछ समय के बाद उसे अर्हत पद भी प्राप्त हो गया | वह भी बुद्ध से साथ सत्य के मार्ग पर चल पड़ा |

नैतिक शिक्षा –  सत्य और साहस की हमेशा विजय होती है |


02. भगवान बुद्ध का ज्ञान | Gautam Buddha Story in Hindi

एक बार की बात है | गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | सफर में चलते – चलते बुद्ध को प्यास लगी तो उन्होंने अपने एक शिष्य से कहा कि जाओ जाकर मेरे लिए पीने का पानी लेकर आओ |

अब ऐसे में उस शिष्य ने आस – पास देखा तो कहीं कोई पानी नहीं मिला मगर उसने और कोशिश कि तो रास्ते में उसे एक पानी का तालाब दिखाई दिया |

वहाँ उसने देखा कि कुछ लोग उस तालाब में कपड़े धो रहे हैं | उसने सोचा कि इस गंदे पानी को मैं बुद्ध के लिए कैसे लेकर जा सकता हूँ ?

ऐसे में वह खाली हाथ हीं वापस चला आया और गौतम बुद्ध से जाकर यह बात बताई | बुद्ध ने कहा – ठीक है ! हम सब यहाँ इस बड़े से पेड़ की छाया में बैठकर आराम करते हैं |

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कुछ समय बीता, पुन: गौतम बुद्ध ने उसी शिष्य को पानी लाने को कहा | अब वह शिष्य वापस से उसी तालाब के पास गया |

वहाँ जाकर उसने देखा कि वह पानी बिलकुल साफ था और पीने योग्य था | अब वह शिष्य बुद्ध के लिए वह पानी लेकर गया और उसने वह पानी गौतम बुद्ध को पिलाया |

बुद्ध ने सब को यह बात बताई कि जिस तरह से पानी में कीचड़ मिट्टी फैल गई थी मगर उसे थोड़ी समय तक छोड़ देने पर उसका सारा मिट्टी नीचे बैठ गया और वह पानी पुन: वापस से साफ हो गया |

उसी तरह से हमारा मस्तिष्क भी है | जब हमारा मस्तिष्क अशांत हो तब उसे समय देकर उसे शांत करो | हमारा मस्तिष्क भी कुछ समय के बाद शांत जरूर होगा |

अशांत मस्तिष्क से कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए | बस हमें करना यह है कि हमें अपने मस्तिष्क को थोड़ी देर तक शांत रखना है जिससे कि हम अच्छे फैसले ले सकते हैं | 

नैतिक शिक्षा – अशांत मस्तिष्क से लिए हुए फैसले हमेशा गलत होते हैं, हमें हमेशा अपने मन को शांत करके कोई भी फैसला करना चाहिए |


03. आत्मनियंत्रण की कला | Gautam Buddha Story in Hindi

एक लड़का अत्यंत जिज्ञासु था | जहाँ भी उसे कोई नई चीज सीखने को मिलती, वह उसे सीखने के लिए तत्पर रहता था |

उसने एक तीर बनाने वाले से तीर बनाना सीखा, नाव बनाने वाले से नाव बनाना सीखा, मकान बनाने वाले से मकान बनाना सीखा, बाँसुरी बनाने वाले से बाँसुरी बनाना सीखा |

इस प्रकार वह बहुत सारे कलाओं में प्रवीण हो गया मगर उसमें अहंकार आ गया | वह अपने परिजनों व मित्रगणों से कहता – इस पूरी दुनिया में मुझ जैसा प्रतिभावान कोई नहीं है |

एक बार शहर में गौतम बुद्ध का आगमन हुआ | उन्होंने जब उस लड़के की कला और अहंकार दोनों के विषय में सुना, तो मन में सोचा कि इस लड़के को एक ऐसी कला सिखानी चाहिए, जो अब तक की सीखी कलाओं से बड़ी हो |

वे भिक्षा का पात्र लेकर उसके पास गए | लड़के ने पूछा – आप कौन हैं ?  बुद्ध बोले – मैं अपने शरीर को नियंत्रण में रखने वाला एक इंसान हूँ | लड़के ने उन्हें अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कहा |

तब उन्होंने कहा – जो तीर चलाना जानता है, वह तीर चलाता है | जो नाव चलाना जानता है, वह नाव चलाता है | जो मकान बनाना जानता है, वह मकान बनाता है, मगर जो ज्ञानी है, वह स्वयं पर शासन करता है |

लड़के ने पूछा – वह कैसे ? बुद्ध ने उत्तर दिया – यदि कोई उसकी प्रशंसा करता है, तो वह अभिमान से फूलकर खुश नहीं हो जाता और यदि कोई उसकी निंदा करता है,

तो भी वह शांत बना रहता है और ऐसा व्यक्ति हीं सदैव आनंद से भरा रहता है | लड़का जान गया कि सबसे बड़ी कला स्वयं को वश में रखना है |  

नैतिक शिक्षा – आत्मनियंत्रण जब सध जाता है, तो समभाव आता है और यहीं समभाव अनुकूल – प्रतिकूल दोनों स्थितियों में हमें प्रसन्न रखता है |


04. भक्त किसान | Gautam Buddha Story in Hindi

एक बार भगवान बुद्ध एक गाँव में अपने किसान भक्त के यहाँ गए | शाम को किसान ने उनके प्रवचन का आयोजन किया | बुद्ध का प्रवचन सुनने के लिए गाँव के सभी लोग उपस्थित थे, मगर वह भक्त हीं कहीं दिखाई नहीं दे रहा था।

गाँव के लोगों में कानाफूसी होने लगी कि कैसा भक्त है कि प्रवचन का आयोजन करके स्वयं गायब हो गया | प्रवचन खत्म होने के बाद सब लोग घर चले गए |

रात में किसान घर लौटा | बुद्ध ने पूछा, कहाँ चले गए थे ? गाँव के सभी लोग तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे | किसान ने कहा – दरअसल प्रवचन की सारी व्यवस्था हो गई थी, पर तभी अचानक मेरा बैल बीमार हो गया |

पहले तो मैंने घरेलू उपचार करके उसे ठीक करने की कोशिश की मगर जब उसकी तबीयत ज्यादा खराब होने लगी तो मुझे उसे लेकर पशु चिकित्सक के पास जाना पड़ा |

अगर उसे चिकित्सक के पास नहीं ले जाता तो वह नहीं बचता | आपका प्रवचन तो मैं बाद में भी सुन लूँगा | अगले दिन सुबह जब गाँव वाले पुन: बुद्ध के पास आए तो उन्होंने किसान की शिकायत करते हुए कहा,यह तो आपका भक्त होने का दिखावा करता है |

प्रवचन का आयोजन कर स्वयं हीं गायब हो जाता है | बुद्ध ने उन्हें पूरी घटना सुनाई और फिर समझाया, उसने प्रवचन सुनने की जगह कर्म को महत्व देकर यह सिद्ध कर दिया कि मेरी शिक्षा को उसने बिल्कुल ठीक ढंग से समझा है |

उसे अब मेरे प्रवचन की आवश्यकता नहीं है | मैं यहीं तो समझाता हूं कि अपने विवेक और बुद्धि से सोचो कि कौन सा काम पहले किया जाना जरूरी है |

यदि किसान बीमार बैल को छोड़ कर मेरा प्रवचन सुनने को प्राथमिकता देता तो दवा बगैर बैल के प्राण निकल जाते | उसके बाद तो मेरा प्रवचन देना हीं व्यर्थ हो जाता |

नैतिक शिक्षा – प्रवचन का सार यहीं है कि सब कुछ त्यागकर प्राणी मात्र की रक्षा करो |


05. अमरत्व का फल | Gautam Buddha Story in Hindi

एक दिन एक किसान बुद्ध के पास आया और बोला – महाराज ! मैं एक साधारण किसान हूँ | बीज बोकर, हल चला कर अनाज उत्पन्न करता हूँ और तब उसे ग्रहण करता हूँ किंतु इससे मेरे मन को तसल्ली नहीं मिलती |

मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ, जिससे मेरे खेत में अमरत्व के फल उत्पन्न हों | आप मुझे मार्गदर्शन दीजिए जिससे मेरे खेत में अमरत्व के फल उत्पन्न होने लगें |

किसान की बात सुनकर बुद्ध मुस्कराकर बोले – भले व्यक्ति ! तुम्हें अमरत्व का फल तो अवश्य मिल सकता है किंतु इसके लिए तुम्हें खेत में बीज न बोकर अपने मन में बीज बोने होंगे |

यह सुनकर किसान हैरानी से बोला – प्रभु ! आप यह क्या कह रहे हैं ? भला मन के बीज बोकर भी फल प्राप्त हो सकते हैं ?

बुद्ध बोले – बिल्कुल हो सकते हैं और इन बीजों से तुम्हें जो फल प्राप्त होंगे | वे साधारण न होकर अद्भुत होंगे, जो तुम्हारे जीवन को भी सफल बनाएंगे और तुम्हें नेकी की राह दिखाएँगे |

किसान ने कहा , ‘प्रभु, तब तो मुझे अवश्य बताइए कि मैं मन में बीज कैसे बोऊँ ? बुद्ध बोले – तुम मन में विश्वास के बीज बोओ, विवेक का हल चलाओ, ज्ञान के जल से उसे सींचो और उसमें नम्रता का उर्वरक डालो |

इससे तुम्हें अमरत्व का फल प्राप्त होगा। उसे खाकर तुम्हारे सारे दु:ख दूर हो जाएँगे और तुम्हें असीम शांति का अनुभव होगा |

बुद्ध से अमरत्व के फल की प्राप्ति की बात सुनकर किसान की आँखें खुल गईं | वह समझ गया कि अमरत्व का फल अच्छे विचारों के द्वारा हीं प्राप्त किया जा सकता है |

नैतिक शिक्षा – अमरत्व का फल अच्छे विचारों के द्वारा हीं प्राप्त किया जा सकता है |


06. श्रावस्ती में अकाल | Gautam Buddha Story in Hindi

एक बार श्रावस्ती में भयंकर अकाल पड़ा | कई लोग भूख से तड़पकर मर गए | सबसे चिंताजनक स्थिति उन माताओं की थी, जिनकी गोद में दुधमुँहे बच्चे थे और उनके घर के पुरुष काल के गाल में समा चुके थे |

बुद्ध को जब यह पता चला तो वे चिंतित हो गए | उन्होंने तत्काल धनवान लोगों की एक सभा बुलवाई और उनसे कहा, ‘आप इन माताओं और इनके बच्चों की रक्षा करें |

वहाँ उपस्थित लोग बोले – हमारे पास अनाज तो है पर वह एक वर्ष हीं चल पाएगा | इसमें से हमने दूसरों को अन्न दिया तो हमारा परिवार भूखों मर जाएगा |

दूसरे घर का दीया जलाना भी तभी अच्छा लगता है जब अपने घर का दीया जल रहा हो | इस पर बुद्ध गंभीर होकर बोले – आप लोग अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पा रहे |

क्या आपको विश्वास है कि आपके सदस्य की मृत्यु केवल अन्न न मिलने के कारण हीं हो सकती है ? क्या वे कोई अन्य रोग या दुर्घटना से बचे रहेंगे ?

क्या आप इस बात के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं कि एक साल में इन पीड़ित व्यक्तियों के अलावा किसी और की मृत्यु नहीं होगी ?

आपको भविष्य के बारे में सब कुछ कैसे पता ? यह सुनकर सभी ने अपने सिर नीचे कर लिए | इसके बाद बुद्ध बोले – भाइयों ! आपदाओं से मिलकर हीं निपटा जाता है |

यदि आज आप इनकी मिलकर सहायता करेंगे, तो अकाल जैसी इस विपत्ति से मुक्ति संभव है, किंतु यदि आप इनकी मदद नहीं करेंगे तो जीवन भर कोई आपकी सहायता करने को भी तैयार नहीं होगा |

याद रखिए, विपत्ति में पड़े लोगों की सहायता करना हीं सबसे बड़ा धर्म है | यह सुनकर श्रावस्ती के सभी सेठों और व्यापारियों ने अपने अनाज के भंडार खोल दिए |

वे स्वयं भूखे लोगों में अन्न बाँटने लगे | कुछ हीं समय बाद सब लोगों के प्रयास से अकाल जैसी विपत्ति पर विजय पा ली गई और सब सुखपूर्वक रहने लगे |

नैतिक शिक्षा – सभी को एक-दूसरे के साथ सुख दुःख में साथ मिलकर रहना चाहिए | 


07. कीमती उपहार | Gautam Buddha Story in Hindi

मगध की राजधानी में भगवान्‌ बुद्ध के प्रवचन सुनने भारी तादाद में लोग जुटे और उनके अमृत वचनों से लाभान्वित हुए | थोड़े दिनों बाद बुद्ध ने अगले शहर जाने का विचार किया ।

अगले दिन के प्रवचन की समाप्ति पर बुद्ध ने वहाँ से जाने की घोषणा कर दी | यह सुनकर नगरवासी दु:खी हो गए और उनसे कुछ दिन और रुकने का आग्रह किया, किंतु बुद्ध ने उनसे क्षमा माँगते हुए इसे अस्वीकार कर दिया  |

नगरवासियों की इच्छा थी कि बुद्ध को कुछ – न – कुछ भेंट दें | बुद्ध अगले दिन अपने आसन पर विराजित हुए और भेंट देने का कार्य आरंभ हुआ | जो भी भेंट आती, बुद्ध अपने शिष्यों से कहकर एक ओर रखवा देते |

तभी एक गरीब वृद्धा खा चुके आधे आम को लेकर आई और बुद्ध के चरणों में वह जूठा आम रखकर बोली, भगवान्‌ ! मेरे पास यहीं समस्त पूँजी है |मैं धन्य हो जाऊँगी, यदि आप इसे स्वीकार करेंगे |

बुद्ध ने बड़े प्रेम से उस आम को उठा लिया | नगरवासियों ने पूछा – भगवान ! उस आम में ऐसा क्‍या था कि आपने उसे स्वयं उठाकर ग्रहण किया ?जबकि हमारे बहुमूल्य उपहार एक ओर रखवा दिए |

तब बुद्ध बोले – वृद्धा के पास जितनी भी पूँजी थी, वह उसने अपने पेट की चिंता किए बगैर मुझे प्यार और श्रद्धा से अर्पित कर दी, जबकि तुम लोगों ने अहंकार से अपने धन का कुछ हीं हिस्सा भेंट किया | तुम्हारे और वृद्धा के दान देने में अहंकार और श्रद्धा का भेद है |

नैतिक शिक्षा – श्रद्धा सहित किया गया दान, दाता व याचक दोनों की आत्मा को तृप्त करता है, जबकि दान में अभिमान के शामिल होने पर वह मात्र आवश्यकता को ही संतुष्ट कर पाता है |


08. नदी का जल | Gautam Buddha Story in Hindi

एक छोटी सी नदी थी | उसके दोनों किनारों पर लोग रहते थे | नदी के पानी से दोनों ओर के लोग अपना – अपना काम चलाते थे और सुखमय जीवन बिताते थे |

एक बार संयोग से पानी को लेकर दोनों पक्षों में तनातनी हो गई | वे एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे कि तुम ज्यादा पानी ले रहे हो | जब आपस में  बातचीत में मामला नहीं निपटा, तो वे मरने – मारने पर उतारू हो गए |

उनके पास जो भी हथियार थे, उन्हें तत्काल निकाल लाए और एक – दूसरे पर टूट पड़ने को आमादा हो गए, तभी किसी ने जाकर भगवान्‌ बुद्ध को सूचना दी |

उन्होंने दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों को बुलाया और तकरार का कारण पूछा | दोनों प्रतिनिधियों ने अपना – अपना पक्ष रखा |

बुद्ध ने दोनों पक्षों की बातें सुनीं और मुस्कुरा कर कहा – तो तुम लोग क्या करोगे ? दोनों प्रतिनिधियों ने आवेश में आकर कहा – हम खून की नदियाँ बहा देंगे |

भगवान्‌ बुद्ध ने कहा – तो तुम्हें खून चाहिए | उन लोगों ने हतप्रभ होकर बुद्ध की ओर देखा फिर बोले – नहीं हमें पानी चाहिए तब सहज भाव से बुद्ध ने कहा – खून बहाकर खून मिलेगा, पानी कैसे पाओगे ?

कुछ ठहरकर आगे बुद्ध बोले – याद रखो हिंसा, हिंसा को बढ़ाती है | बैर, बैर को बढ़ाता है | नदी से हीं सीख लो कि वह किसी से लड़ती नहीं  | वह निश्छल भाव से अपने जल का सभी के लिए दान करती है |

बुद्ध के शब्दों ने जादू जैसा काम किया और दोनों पक्षों की समस्या का सहज रूप से समाधान हो गया | दोनों पक्ष मिल-बाँटकर पानी का उपयोग करने लगे |

नैतिक शिक्षा – हिंसा, हिंसा को बढ़ाती है | बैर, बैर को बढ़ाता है |


09. संयम की शिक्षा | Gautam Buddha Story in Hindi

बुद्ध के पास उनका एक शिष्य आया और बौखलाए स्वर में बोला, जमींदार राम सिंह ने मेरा अपमान किया है | आप सभी चलें, उसे सबक सिखाना होगा |

बुद्ध बोले – प्रियवर ! सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती | तुम इस बात को भुला दो | जब प्रसंग भुला दोगे तो अपमान कहाँ बचा रहेगा |

शिष्य ने कहा – उसने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया था | आप चलिए तो सही, आपको देखते हीं वह शर्मिंदा हो जाएगा और क्षमा माँग लेगा | इससे मैं संतुष्ट हो जाऊँगा |

बुद्ध कुछ विचार कर बोले – अच्छा यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य हीं रामजी के पास चलकर उसे समझाने का प्रयास करूँगा | शिष्य ने आतुर होकर कहा – चलिए, नहीं तो रात हो जाएगी |

बुद्ध ने कहा – रात आएगी तो क्या ? रात के पश्चात दिन भी तो आएगा | यदि तुम वहाँ चलना आवश्यक हीं समझते हो तो मुझे कल याद दिलाना, कल चलेंगे |

दूसरे दिन बात आई – गई हो गई | शिष्य अपने काम में लग गया और बुद्ध अपनी साधना में लीन हो गए | दोपहर होने पर बुद्ध ने शिष्य से पूछा – आज रामजी के पास चलना है ?

शिष्य ने कहा – नहीं ! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी हीं थी | अब रामजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं है |

बुद्ध ने मुस्कुरा कर कहा – अगर हम तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचें तो हमारे भीतर की कटुता समाप्त हो जाती है | शिष्य बुद्ध का आशय समझ उनके प्रति नतमस्तक हो गया |

नैतिक शिक्षा – अगर हम तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचें तो हमारे भीतर की कटुता समाप्त हो जाती है |


10. गौतम बुद्ध | Gautam Buddha Story in Hindi

बुद्ध अपना घर-परिवार छोड़कर तपस्या करने के उद्देश्य से घर से निकले थे | वह अनेक कष्टों को सहते हुए भोजन की मात्रा घटाकर घटाते – घटाते पूर्णतया निराहार रहने लगे थे |

उन्होंने वस्त्र भी प्रायः त्याग दिए थे किंतु सफलता न मिलने के कारण जिस धैर्य का सहारा लेकर वे साधना समर में उतरे थे, वह जवाब देने लगा था और बुध घर वापस लौटने लगे थे |

रास्ते में एक ठंडे जल की झील पड़ी तो वे थोड़ा विश्राम करने के लिए झील के किनारे बैठ गए | तभी उनकी दृष्टि एक गिलहरी पर पड़ी, जो बार – बार झील में डुबकी लगाती और बाहर आकर रेत में लोटती, पुनः झील में डुबकी लगाने दौड़ पड़ती |

यह देखकर बुद्ध को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने उससे पूछा, “नन्ही गिलहरी तुम यह क्या कर रही हो ?” गिलहरी बोली, “इस झील ने मेरे बच्चे को खा लिया है इसलिए मैं इसे खाली कर दूँगी |

बुद्ध को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने उससे फिर पूछा, “परंतु तुम्हारे इस कार्य से क्या यह संभव है ?” यह तो मैं नहीं जानती परंतु जब तक किया सुख नहीं जाएगी, मैं प्रयास करती रहूँगी |”

गिलहरी की बातें सुनकर बुद्ध को बहुत आश्चर्य हुआ, वे थोड़ी उत्सुकता के साथ बोले, “इस जन्म में तो मुझे यह संभव नहीं लगता है |” उनकी बात सुनकर गिलहरी ने कहा, “भले हीं यह संभव ना हो और मेरा सारा जीवन इसमें लग जाए |”

परंतु इतना तो निश्चित है कि इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा पानी निकाल कर मैं अपने उद्देश्य की ओर बढ़ती रहूँगी | बुद्ध को गिलहरी की बात समझ में आ गई | वे पुनः तपस्या में रत हो गए |

नैतिक शिक्षा – इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है किसी भी कार्य को छोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि निरंतर प्रयास करने पर सफलता अवश्य मिलती है |


11. वन देवता | Gautam Buddha Story in Hindi

जब भगवान गौतम बुद्ध कठोर तपस्या में थे | उन्हीं दिनों सुजाता नामक एक ब्राह्मण कन्या ने एक मन्नत मांग रखी थी | उसका कहना था कि यदि उसे इच्छानुसार पति मिला तथा प्रथम बार पुत्र उत्पन्न हुआ तो वह प्रत्येक वर्ष वन देवता के रूप में बरगद की पूजा करेगी |

वह वन देवता के रूप में बरगद की इसलिए पूजा करती क्योंकि गौतम बुद्ध उसी वृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे थे | उसकी यह दोनों इच्छाएँ पूरी हो गई थी |

वैशाख पूर्णिमा के दिन सुजाता ने 1000 गायों का दूध निकाला तथा 100 गायों को पिला दिया | फिर उन 100 गायों का दूध निकाल कर उसने 10 गायों को पिलाया |

अंत में उसने उन 10 गायों का दूध निकाल कर एक गाय को पिला दिया | एक गाय के दूध से सुजाता ने खीर बनाई एवं पूजा का सामान लेकर वह वन देवता की पूजा के लिए बरगद के वृक्ष के निकट आई |

उसी बरगद के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ध्यान में मग्न बैठे थे | उन्हें वहाँ देखकर सुजाता आश्चर्य से भर गई | गौतम बुद्ध का चेहरा एक तेज से जगमगा रहा था |

सुजाता उन्हें देखती रह गई और उसने मन में सोचा कि मैं भाग्यशाली हूँ | मुझे साक्षात देवता के दर्शन हो रहे हैं | उसने सोने की थाली में रखी हुई खीर गौतम के सामने रख दी | उनके सामने पुष्प चढ़ाएं | उनकी पूजा की तथा उनके चरणों में प्रणाम करके चली गई |

नैतिक शिक्षा – श्रद्धा से सम्मान का भाव उत्पन्न होता है |