इस लेख में हम बच्चों के लिए जबरदस्त मोटिवेशनल कहानी (Short Motivational Story in Hindi) लेकर आए हैं, इन प्रेरणादायक कहानियों से बच्चे बहुत हीं प्रेरित होंगे |
01. प्रतिभा की पहचान | Short Motivational Story in Hindi
बहुत समय पहले की बात है | यूनान देश के गाँव में एक गरीब बालक रहता था | वह बालक अपने भरण-पोषण के लिए रोज जंगल में जाकर लकडियाँ काटता और फिर उसे गट्ठर बनाकर बाजार में ले जाकर बेच देता था |
एक दिन जब वह बालक बाजार में लकड़ियाँ बेच रहा था | तभी यूनान के विख्यात तत्वज्ञानी डेमोक्रिटस उधर से गुजरे | उनकी नजर लकड़ियों के उस गट्ठर पर पड़ी, जिन्हें उस बालक ने बड़े ही कलात्मक ढंग से बाँध रखा था |
उत्सुकता वश वे बालक के पास आए और उससे पूछा – यह गट्ठर तुमने बाँधा है ? बालक ने जवाब दिया – हाँ ! मैं रोज जंगल में लकडियाँ काटता हूँ और उन्हें इसी तरह बाँधकर यहाँ लाता हूँ |
दोबारा इसे खोल कर बाँध सकते हो ? उन्होंने बालक से पूछा | हाँ ! क्यों नहीं, बालक बोला और गट्ठर खोलकर बाँधने लगा | इस छोटे से काम में बालक की लगन देखकर उन्होंने बालक से पूछा – क्या तुम मेरे साथ चलोगे ? मैं तुम्हें शिक्षा दिलाऊँगा |
कुछ सोचकर बालक उनके साथ चल दिया | फिर उस बालक ने उच्च शिक्षा ग्रहण की | यहीं बालक आगे चलकर महान दार्शनिक पाइथागोरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
02. नन्हा थॉमस | Short Motivational Story in Hindi
नन्हा थॉमस खेतों में दौड़ लगाते लगाते बाड़े की तरफ निकल गया | बाड़े में भेड़ बकरियाँ घूम रही थीं | एक कोने में मुर्गी घर बना था | कुछ मुर्गियाँ इधर-उधर घूम रही थी लेकिन कुछ मुर्गियाँ एक जगह जमकर बैठी थी |
अरे ! यह तो हिलती हीं नहीं, पर क्यों ? नन्हे थॉमस के मन में प्रश्न उठा | मैं भी इन्हें जरुर उड़ाऊँगा | थॉमस यह सोच कर ज्यों हीं आगे बढ़ा कि बड़ी बहन ने आवाज लगाई – रुको ! इन्हें परेशान मत करो |
चलो भीतर चल कर खाना खाओ | मैं कब से तुम्हें बुला रही हूँ पर यह हिलती क्यों नहीं ? थॉमस ने जिज्ञासा से पूछा | अरे ! यह अपने अंडों के ऊपर बैठी हैं |
इनके अंडों से चूजे निकलेंगे फिर तुम उनसे खेलना | अभी भीतर चलो – बड़ी बहन ने प्यार से समझाया | थॉमस ने मुँह बनाया और बहन के पीछे-पीछे चल दिया |
खाना खाकर सब आराम करने लगे | थॉमस नजर बचाकर बाहर निकल आया | वह चुपके से मुर्गियों के पास पहुँचा | मुर्गियों को अंडों पर बैठे देखकर वह बोला – तुम अभी तक यहीं बैठी हो | जाओ तुम खेलो | लो तब तक मैं तुम्हारे अंडों के ऊपर बैठ जाता हूँ |
थॉमस लपककर अंडों पर बैठ गया | पचाक-पचाक अंडे टूट गए | अब थॉमस की आँखों से आँसू बहने लगे | यह क्या हुआ ? अब चूजे कहाँ से निकलेंगे ?
रोते – रोते घर के भीतर गया | थॉमस के रोने के कारण जानकर सब हँसे और उसे माँ ने समझाया कि अंडों पर मुर्गी के बैठने से हीं चूजे निकलते हैं | मुर्गी फिर अंडे देगी | माँ की बात सुनकर थॉमस चुप हुआ लेकिन उसके मन में अभी भी कई प्रश्न थे |
बचपन से छोटी छोटी चीजों को देखने-परखने का ध्यान देने वाला यह बालक बड़ा होकर वैज्ञानिक बना – थॉमस अल्वा एडिसन |
वे महान वैज्ञानिक थे | इनका जन्म 11 फरवरी सन 1847 को अमेरिका में हुआ | जी बिजली के बल्ब के प्रकाश में हम अपने काम करते हैं, वह इन्हीं की देन है |
03. ईमानदारी की परख | Short Motivational Story in Hindi
बालक को नये-नये खेल खेलने में आनंद आता था। एक दिन पिताजी ने उसे छोटी-सी कुल्हाड़ी लाकर दी। खेल-खेल में बालक ने कुल्हाड़ी से एक आम का पेड़ काट डाला।
शाम को पिताजी घर आए और आम के पेड़ को कटी अवस्था में देखकर आगबबूला हो गए। उन्होंने बालक से पूछा, ‘यह आम का पेड़ किसने इतनी बुरी तरह से काटा है।’
बालक डर गया और सोचने लगा कि यदि वह सच बोलता है तो सजा अवश्य मिलेगी। हां, झूठ बोलने पर सजा से अवश्य बचा जा सकता है।
फिर बालक ने मन में सोचा, झूठ बोलने से सजा तो नहीं होगी किंतु झूठ बोलना भी तो गलत है। बालक डरते-डरते बोला, ‘पिताजी यह पेड़ मैंने काटा है।’
पिताजी के चेहरे पर प्रसन्नता झलक उठी। उन्होंने पुत्र की ईमानदारी परखने के लिए ही उससे यह बात पूछी थी। बोले, ‘बेटा, तुमने सच बोलकर मेरा मन जीत लिया।
इसलिए आज जो तुमने नुकसान किया है, मैं तुम्हें उसके लिए सज़ा नहीं दूंगा, बस यही कहूंगा कि जीवन में कभी भी झूठ मत बोलना।’
बालक ने प्रण किया कि वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगा। यही बालक आगे चलकर राष्ट्रपति पद पर विराजमान हुए। वह थे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
04. बालक की सोच | Short Motivational Story in Hindi
बड़े प्यार के साथ माँ ने अपने पुत्र से कहा – बेटा ये लो दो टुकड़े मिठाई के हैं | इनमें से यह बड़ा टुकड़ा तू स्वयं खा लेना और छोटा टुकड़ा अपने साथी को दे देना |
अच्छा माँ ! कह बालक दोनों टुकड़े लेकर घर से बाहर आ गया | वह साथी को मिठाई का बड़ा टुकड़ा देकर स्वयं छोटा खाने लगा | माँ सब खिड़की में से देख रही थी |
उसने आवाज देकर बालक को बुलाया और बोली – अरे क्यों रे! मैंने तुझसे बड़ा टुकड़ा खाने और छोटा उस बच्चे को देने के लिए कहा था परंतु तू छोटा स्वयं खाकर बड़ा उसे क्यों दिया ?
बालक सहज बोली में बोला – माँ दूसरों को अधिक देने और अपने लिए कम से कम लेने में मुझे मालूम नहीं क्यों अधिक आनंद आता है | वह बालक था “बाल गंगाधर तिलक” |
माँ गंभीर हो गई | माँ बहुत देर विचार करती रही – बालक की इन उदार भावनाओं के संबंध में! सचमुच यहीं मानवीय आदर्श हैं और इसी में विश्व की शांति की, एकता की सारी संभावनाएँ निर्भर हैं |
मनुष्य अपने लिए कम चाहे और दूसरों को अधिक देने का प्रयत्न करें तो समस्त संघर्षों की समाप्ति और स्नेह, सौजन्य की स्वर्गीय परिस्थितियाँ सहज हीं उत्पन्न हो सकती हैं |
05. सत्य का ईनाम | Short Motivational Story in Hindi
भारत के इतिहास में अनेक वीर महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने कार्यों से अपने आपको सदा सदा के लिए अमर बना दिया | इन्हीं में से एक गोपाल कृष्ण गोखले के नाम को कौन नहीं जानता ?
वे महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु के रूप में जाने जाते हैं | वह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक अच्छे समाज सुधारक भी थे | यहीं नहीं, उन्हें वित्तीय मामलों की भी अच्छी समझ थी |
इनका जन्म 9 मई सन 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोथलुक नामक गाँव में हुआ था | बचपन से हीं इन्हें सच बोलने की आदत थी | बाल गोपाल कृष्ण गोखले जब स्कूल में पढ़ते थे |
तब एक दिन उनके शिक्षक ने कुछ सवाल घर से हल करने करके लाने को दिए | बाल गोपाल को उनमें से एक सवाल नहीं आता था इसलिए उन्होंने एक मित्र की मदद से वह सवाल हल कर लिया |
जब स्कूल में बच्चों की कॉपी देखी गई तब केवल गोपाल कृष्ण गोखले के सभी उत्तर ठीक थे | यह देखकर उनके शिक्षक बहुत प्रसन्न हुए | वह उनको इनाम देने लगे लेकिन बालक गोपाल कृष्ण ने इनाम लेने से इंकार कर दिया |
शिक्षक को बड़ा आश्चर्य हुआ | उन्होंने कारण पूछा तो गोपाल कृष्ण ने कहा एक सवाल में मैंने अपने मित्र की मदद ली | इनाम उसे हीं मिलना चाहिए |
यह सुनकर शिक्षक और भी खुश हो गए | वह गोखले के हाथ में नाम देते हुए बोले अब यह इनाम मैं तुम्हें तुम्हारी सच्चाई के लिए देता हूँ | ऐसे थे हमारे प्रिय गोपाल कृष्ण गोखले |
19 फरवरी सन 1915 को मुंबई में उनका निधन हो गया | उन्होंने जीवन भर सत्य और ईमानदारी से देश की सेवा की | उनका नाम इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगा |
06. आज्ञाकारी आरुणी | Short Motivational Story in Hindi
प्राचीन काल की बात है | तक्षशिला नगरी में धौम्य नाम के ऋषि रहते थे | उनके तीन प्रधान शिष्य थे | आरुणि उपमन्यु और वेद | इनमें से आरुणि बड़ा हीं आज्ञाकारी शिष्य था |
एक दिन की बात है | भयंकर बारिश हो रही थी | गुरु ने आरुणि को खेत पर मेड़ बाँधने के लिए भेजा | गुरु की आज्ञा से आरुणि बारिश में भीगते हुए तुरंत खेत पर गया |
वहाँ उसने देखा कि खेत की मेड़ एक स्थान पर टूट गई है और पानी बड़े जोर से बाहर बाहर जा रहा है | आरुणि ने वहाँ मिट्टी रखकर मेड़ बाँधनी चाहिए |
परंतु काफी प्रयत्न करने के बाद भी वह मेड़ न बना सका | जब वह मेड़ बाँधने में असमर्थ हो गया तब उसे एक उपाय सूझा | वह मेड़ की जगह स्वयं लेट गया |
इससे पानी का बहाव रुक गया लेकिन काफी समय बीतने पर भी जब आरुणि वापस नहीं आया | तब ऋषि ने अपने शिष्यों से पूछा कि आरुणि कहाँ है ?
शिष्यों ने कहा – आपने हीं तो उसे खेत की मेड़ बांधने के लिए भेजा था तब से वह लौट कर नहीं आया | आचार्य ने शिष्यों से कहा – चलो हम लोग खेत पर चल कर देखें |
जब वे लोग खेत पर पहुँचे तो देखा आरुणि मेड़ के स्थान पर स्वयं लेटा हुआ है | गुरु के पूछने पर आरुणि ने बताया – आचार्य खेत से जल बहा जा रहा था |
जब मैं उसे किसी प्रकार नहीं रोक सका तो स्वयं ही मेड़ के स्थान पर लेट गया | आचार्य ने आरुणि को उठाकर हृदय से लगा लिया और कहा – बेटा तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है इसलिए तुम्हारा कल्याण होगा |
सारे वेद और धर्मशास्त्र तुम्हें ज्ञात हो जाएँ | इस प्रकार आरुणि ने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया और गुरु ने प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया | हमें भी अपने जीवन में आरुणि के गुणों को अपनाना चाहिए |
07. एकता में शक्ति | Short Motivational Story in Hindi
गंगाशरण के पाँच लड़के थे – मोहन, सोहन शिवपाल, रमेश और श्याम | यह पाँचों लड़के परस्पर झगड़ते रहते थे | छोटी-छोटी बातों पर आपस में ‘तू-तू’, ‘मैं-मैं’ करने लगते और मारपीट कर लेते थे |
गंगाशरण अपने लड़कों के झगड़े से बहुत परेशान था | वह उन्हें बहुत समझाता पर वह नहीं मानते थे | एक दिन उसे एक उपाय सूझा, उसने लकड़ी की कुछ पतली – पतली सूखी टहनियों को इकट्ठा कर एक छोटा गट्ठर बना लिया |
फिर अपने पांचों पुत्रों को बुलाकर उसने कहा, “तुम लोगों को में से जो इस गट्ठर को तोड़ देगा, उसे पुरस्कार मिलेगा |”
पाँचों लड़के आपस में झगड़ने लगे कि गट्ठर को पहले मैं तोडूँगा क्योंकि उन्हें डर था कि यदि दूसरा भाई पहले तोड़ देगा तो पुरस्कार उसी को मिल जाएगा |उन्हें झगड़ते हुए देख गंगाशरण कहा, “पहले छोटे भाई श्याम को गट्ठर तोड़ने दो |”
श्याम ने गट्ठर उठा लिया और जोर लगाने लगा | दाँत दबाकर, आँख मीचकर उसने बहुत जोर लगाया | सिर पर पसीना आ गया किंतु गट्ठर की टहनियाँ नहीं टूटीं | उसने गट्ठर रमेश को दे दिया | रमेश ने भी जोर लगाया परंतु वह भी नहीं तोड़ सका |
इस प्रकार सभी लड़कों ने बारी-बारी से गट्ठर लिया और तोड़ने का प्रयास किया किंतु उनमें से कोई भी उसे तोड़ने में सफल नहीं हो सका |
गंगाशरण ने गट्ठर खोलकर एक – एक टहनी सभी लड़कों को दी और कहा, “अब इसे तोड़ों |” इस बार सभी ने टहनियों को आसानी से तोड़ दिया |
अब गंगाशरण ने समझाया, “देखो ! टहनियाँ जब तक एक साथ थीं, तुम लोगों में से कोई उन्हें नहीं तोड़ सका और जब यह अलग – अलग हो गई तो तुमने सरलता से इनको तोड़ दिया |”
इसी प्रकार यदि तुम लोग आपस में लड़ते झगड़ते रहोगे और अलग – अलग रहोगे तो लोग तुम्हें आसानी से दबा लेंगे | यदि तुम लोग परस्पर मेल से रहोगे तो कोई भी तुमसे शत्रुता करने का साहस नहीं करेगा |
गंगाशरण के लड़कों ने उस दिन से आपस में झगड़ना छोड़ दिया | वह प्रेम भाव से रहने लगे | बच्चों ! इसलिए कहा गया है कि संगठन में हीं शक्ति है, अतः हमें परस्पर मिलकर रहना चाहिए |
08. मेहनत की कमाई | Short Motivational Story in Hindi
एक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था | उसने अपने व्यापार से काफी धन कमाया था किंतु अब वह बूढ़ा हो गया था और उससे इतना बड़ा व्यापार संभलता नहीं था |
वह चाहता था कि अब उसका पुत्र व्यापार सँभाले, पर उसका पुत्र बड़ा हीं आरामतलब और आलसी था | मेहनत करने का ना तो उसे अभ्यास था और नहीं उसकी इच्छा |
पिता ने उसे बहुत समझाया, परंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ | एक दिन प्रातः काल व्यापारी ने अपने पुत्र को अपने पास बुलाया और कहा – “बेटा जाओ और आज कमा कर लाओ वरना रात का भोजन नहीं मिलेगा |”
चिंता में डूबा उदास चेहरा लिए बेटा सीधा अपनी माँ के पास गया और रोने लगा | माँ ने पुत्र की आँख में आँसू देखे तो उसकी ममता उमड़ पड़ी | पुत्र की परेशानी सुनकर उसने अपना संदूक खोला और एक अशर्फी निकाल कर उसके हाथ पर रख दी |
रात को पिता ने बेटे से पूछा – “आज तुमने कितना कमाया ?” बेटे ने जेब से अशर्फी निकालकर अपने पिता के सामने रख दी | पिता ने अपने बेटे से कहा – “जाओ इस अशर्फी कुएँ में फेंक दो |”
लड़के ने बड़ी तत्परता से पिता की आज्ञा का पालन किया | अनुभवी पिता सारी बात समझ गया | दूसरे दिन उसने अपनी पत्नी से पुत्र को अशरफी देने से मना कर दिया |
उसने पुत्र को फिर बुलाया और कहा – जाओ बेटा, कुछ कमा कर लो तभी तुम्हें रात का भोजन मिलेगा |” बेटा फिर अपनी माँ के पास पहुँचा | माँ ने आज उसे पैसे देने से मना कर दिया | लड़का बहन के पास जाकर रोने लगा |
भाई को रोता देख बहन ने अपना सिंगारदान खोला और उसमें से एक रूपया निकालकर भाई को दे दिया | रात को पिता ने पुत्र से पूछा – बेटा, आज तुमने क्या कमाया ?
लड़के ने जेब से एक रूपया निकाल कर पिता के सामने रख दिया | पिता ने कहा – इसे कुएँ में फेंक आओ |
लड़के ने फिर तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया | अनुभवी पिता सब कुछ समझ गया | उसने अपनी बेटी को बुलाकर भाई को पैसे देने से मना कर दिया |
अगले दिन पिता ने फिर पुत्र को बुलाया और पहले दिन वाली बात दोहरा दी | लड़का बारी-बारी अपनी माँ और बहन के पास गया किंतु दोनों ने उसे पैसे देने से मना कर दिया |
दोनों ने उसे समझाया कि वह कुछ काम करें | लड़का उदास हो गया | सारा दिन बीत गया | उसके आँसुओं में माँ – बहन का दिल ना पसीजा | विवश होकर वह उठा और कुछ काम ढूंढने बाजार की ओर निकल पड़ा |
दिन ढल रहा था | थोड़ी देर में हीं अंधेरा हो जाएगा | कुछ न कुछ तो करना हीं पड़ेगा | इसी चिंता में उसकी भेंट एक सेठ से हो गई |
सेठ के पूछने पर उसने बताया कि उसे काम चाहिए | सेठ ने कहा – तुम मेरा यह सामान उठाकर घर तक ले चलो, मैं तुम्हें चवन्नी दूँगा |
व्यापारी के लड़के ने सामान उठाया | सामान काफी भारी था | सेठ के घर तक पहुँचते – पहुँचते उसके पाँव काँपने लगे और वह पसीने से लथपथ हो गया | चवन्नी लेकर वह घर पहुँचा |
रात को पिता ने पुत्र को बुलाकर पूछा – आज तुमने क्या कमाया ? पुत्र ने जेब से चवन्नी निकालकर सामने रख दी | पहले दिन की तरह पिता ने कहा – इसे कुएँ में फेंक दो |
लड़के की आँखें आसुओं से भीग गई | वह चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा | पिता ने अपनी बात दोहराई – इस पैसे को कुएँ में फेंक आओ |
लड़के ने हिम्मत बटोरी और कहा – इस पैसे को कमाने में मेरी गर्दन टूट गई और आपका कह रहे हैं कि इसे कुएँ में फेंक आओ | अनुभवी पिता सब कुछ समझ गया | अगले दिन उसने अपना कारोबार अपने पुत्र को सौंप दिया |
09. सच्ची मित्रता की कहानी | Short Motivational Story in Hindi
एक गाँव में दो बच्चे रहते थे | एक का नाम राम और दूसरे का नाम श्याम था | जिनकी उम्र क्रमशः 10 और 07 साल थी तथा उन दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी |
हमेशा साथ-साथ खेलते , साथ – साथ पढ़ने जाते और भी बहुत समय एक दूसरे के साथ हीं बिताते | एक बार की बात है | दोनों खेलते-खेलते एक कुएँ के पास पहुँच गये, जो कि गाँव से बाहर खेतों के पास था |
किसान या कोई यात्री वहाँ पानी पीने के लिए कुआँ का उपयोग करते थे | अचानक खेलते-खेलते राम का पैर फिसला और वह कुआँ में जा गिरा | श्याम अचानक ये सब देखकर घबरा गया |
राम कुआँ में गिर गया पर उसे तैरना नहीं आता था | वो अन्दर से चिल्लाने लगा, बचाओ! बचाओ!! इधर श्याम को कुछ समझ में नही आ रहा था कि वह कैसे राम को कुआँ से बाहर निकाले |
तब तक उसकी नजर वहाँ रखी रस्सी पर पड़ी, जिसमें साथ में बाल्टी भी बंधी थी | उसने रस्सी खोली ओर कुआं में फेंक दिया और राम को बोला कि रस्सी पकड़ लो |
राम ने रस्सी पकड़ ली और श्याम उस रस्सी को ऊपर खींचने लगा, मगर राम श्याम से उम्र और वजन दोनों में बड़ा था | श्याम रस्सी को नही खींच पा रहा था मगर वहाँ पर कोई भी नहीं था, जो उसकी मदद कर सके |
श्याम लगातार जैसे – तैसे रस्सी खींचता रहा, बड़ी देर की कड़ी मेहनत के बाद उसने राम को बहार निकाल हीं लिया | बाहर आकर राम ने श्याम को जोर से गले लगाया और धन्यवाद कहा और दोनों घर आ गए |
जब यह बात उन दोनों ने घरवालों को बताया तो कोई भी उनकी बात पर भरोसा हीं नही कर रहा था | धीरे-धीरे यह बात पूरे गाँव में फैल गई |
कोई भी इस बात को मानने को तैयार हीं नहीं था कि श्याम अपने से भारी वजन वाले राम को कैसे कुआं से रस्सी के सहारे खींचकर बाहर निकाल सकता है |
फिर सभी लोग गाँव के सबसे बुजुर्ग और बुद्धिमान व्यक्ति रामू काका के यहाँ पहुँचे और सारी बातें बताई | रामू काका ने कहा की यह बात इकदम सही है की श्याम ने राम को बचाया है |
इस पर गाँव वालों ने पूछा किआखिर इस बात पर कैसे विश्वास कर लिया जाए तो रामू काका ने कहा कि यह बात एकदम सही है, क्योंकि वहाँ पर राम ओर श्याम के आलावा ओर कोई नहीं था |
जो श्याम को यह कह सकता था कि तू यह नहीं कर सकता | यहीं कारण है कि श्याम ने यह कर दिखाया जो कि बहुत मुश्किल था |
10. जीवन का मोल | Short Motivational Story in Hindi
एक बार युद्ध के दौरान एक राजा शत्रु सेना के हाथ लग गया परंतु किस्मत से वह उनके चंगुल से छूट गया और अपनी जान बचाता हुआ इधर-उधर भटकता रहा तभी उसे एक किसान का घर दिखाई दिया |
वहाँ उसने किसान से छुपने की जगह माँगी | किसान ने अपने घर में रखे रुई के गट्ठर के बीच राजा को छुपा दिया | शत्रु सैनिक उसे ढूंढते हुए किसान के घर भी आए |
उन्होंने सारा घर तलाश किया | यहाँ तक कि एक सैनिक ने अपनी तलवार रुई के गठर में भी घुसेड कर जाँचा | तलवार राजा को छू नहीं पाई पर बहुत करीब से गुजरी |
राजा को न पाकर शत्रु सैनिक वहाँ से चले गए | राजा वहाँ से निकल कर पुनः अपनी सेना से जा मिला | राजा के सैनिकों ने पूरे जोश और हिम्मत से अपने शत्रुओं का सामना किया और युद्ध में विजयी हुए |
राजा अपने उपकार को न भूला और उसने किसान का सम्मान करने का निर्णय लिया | उसने अपने दरबार में किसान को आमंत्रित किया और उससे इच्छानुसार इनाम माँगने को कहा |
किसान बोला – महाराज, मेरे पास भगवान का दिया सब कुछ है | आप कृपा करके मुझे इतना बता दें कि जब सैनिकों ने अपनी तलवार रुई के गठर में घुसेड दी थी तो आपको कैसा लगा था |
राजा को यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया | उसका चेहरा एकदम लाल हो गया | वह बोला – गुस्ताख ! तुम्हारी यह जुर्रत कि हम से ऐसे बातें पूछो |
तुम्हें इसका दंड जरूर मिलेगा | यह कह कर उसने प्रधान सेनापति को हुक्म दिया कि इस गुस्ताख किसान को एक सार्वजनिक समारोह में तोप से उड़ा दिया जाए ताकि कोई दोबारा इस तरह की हरकत ना कर सके |
सैनिकों ने किसान को भी बंदी बना लिया | किसान गिड़गिड़ाता रहा परंतु राजा ने एक न सुनी और उठ कर चला गया | एक बड़े से मैदान में मंच बनाया गया |
एक तरफ किसान को बाँध दिया गया और दूसरी तरफ तोप लगा दी गई | किसान का बहुत बुरा हाल था | वह बार – बार राम की दुहाई माँग रहा था |
आदेश होते हीं तोप दाग दी गई | धमाके की आवाज के साथ तोप से गोला छूटा और किसान के कान को हवा देते हुए निकल गया |
भयभीत किसान थरथर काँप रहा था | राजा अपने स्थान से किसान को बंधन मुक्त करने का आदेश देते हुए किसान से कहा – मुझे ऐसा लगा था |