Top 10 Moral Stories in Hindi | नैतिक कहानियों का खजाना

आज हम यहाँ बच्चों के लिए दस नैतिक कहानियाँ (Top 10 Moral Stories in Hindi) लेकर आए हैं, क्योंकि बच्चे नैतिक कहानियों को बड़ी गौर से सुनते और पढ़ते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्तर में वृद्धि होती है |

01. लोमड़ी और अंगूर की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

top 10 moral stories in hindi

भीषण गर्मी का दिन था | एक लोमड़ी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी | उसने हर जगह खोज की मगर उसे खाने को कुछ भी न मिला |

वह बहुत थक गई थी मगर उसकी तलाश जारी थी | अचानक वह एक अंगूर के बाग में पहुँच गई, जो रसीले अंगूरों से लदा हुआ था | लोमड़ी ने चारों तरफ देखा कि कोई शिकारी तो नहीं |

अंगूर देखकर लोमड़ी की आँखें चमक उठीं | अंगूरों की महक से उसे इस बात का अंदाजा हो गया कि अंगूर बहुत रसदार और मीठे हैं | उसने आस-पास देखा तो कोई नहीं था, इसलिए उसने अंगूर चुराकर खाने का फैसला किया |

उसने अंगूरों को खाने के लिए एक लंबी छलांग लगाई मगर वह अंगूरों तक नहीं पहुँच पाई और धड़ाम से जमीन पर आ गिरी | वह अपने पहले प्रयास में असफल हो गई | उसने सोचा क्यों न फिर से प्रयास किया जाए |

वह एक बार फिर जोश से खड़ी हुई और इस बार उसने अपनी पूरी ताकत के साथ अंगूरों की ओर छलांग लगाई मगर वह इस बार भी सफल नहीं हो सकी | परंतु उसने हार नहीं मानी |

उसने सोचा कि अगर दो प्रयास विफल हो गए तो क्या, इस बार तो मैं सफल होकर रहूँगी | फिर क्या था, लोमड़ी पुनः दोगुने जोश के साथ खड़ी हुई |

इस बार उसने अपने शरीर की सारी ताकत को एकत्र कर एक लंबी छलाँग लगाई | उसे लगा था कि इस बार वह अंगूर को पाकर हीं रहेगी मगर ऐसा नहीं हुआ | इस बार की कोशिश भी नाकाम रही |

इतने प्रयास के बाद भी वह एक भी अंगूर हासिल नहीं कर पाई | उसके पैरों में चोट लगी, इसलिए उसने अंत में हार मान ली | वहाँ से जाते समय लोमड़ी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि अंगूर खट्टे हैं |”

नैतिक शिक्षा – अगर हम किसी चीज को पा नहीं सकते तो हमें उस चीज के बारे में गलत राय नहीं बनानी चाहिए |


02. चरवाहा और भेड़िया की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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एक समय की बात है | एक गाँव में एक चरवाहा रहता था | उसके पास बहुत सारी भेड़ थीं, वह उन्हें चराने पास के जंगल में जाया करता था |

हर रोज सुबह वह भेड़ों को जंगल ले जाता और शाम तक वापस घर लौट आता था | पूरा दिन भेड़ घास चरतीं और चरवाहा बैठे-बैठे ऊब जाता था |

ऊबने से बचने के लिए वह प्रतिदिन खुद का मनोरंजन के लिए नए-नए तरीके ढूँढ़ता रहता था | एक दिन उसे एक नई शरारत सूझी |

उसने सोचा, क्यों न इस बार मनोरंजन गाँव वालों के साथ किया जाए | यह सोच कर उसने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि बचाओ! बचाओ!! भेड़िया आया! भेड़िया आया!!

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उसकी आवाज़ सुन कर गाँव के लोग लाठी-डंडे लेकर दौड़ते हुए वहाँ उसकी मदद करने पहुँच गए | जैसे हीं गाँव वाले वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि यहाँ तो कोई भेड़िया नहीं है |

चरवाहा यह सब देखकर हँस रहा था – हा!हा!हा! बड़ा मज़ा आया | उसने गाँव वालों से बोला कि मैं तो मज़ाक कर रहा था | उसकी ऐसी बातें सुन गाँव वालों का चेहरा गुस्से से लाल-पीला हो गया |

एक व्यक्ति ने कहा कि हम सभी अपना काम छोड़ कर तुम्हें बचाने आए हैं और तुम हँसकर हमारा मजाक उड़ा रहे हो? ऐसा कह कर सब लोग वापस अपने काम पर लौट गए |

कुछ दिन बाद, गाँव वालों को फिर से चरवाहे की आवाज़ सुनाई दी | बचाओ! बचाओ! भेड़िया आया! बचाओ! इतना सुनते हीं गाँव वाले फिर से चरवाहे की मदद करने के लिए दौड़ पड़े |

दौड़ते हुए गाँव वालें वहाँ पहुँचे तो वो देखकर चकित रह गए | वो देखते हैं कि चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ आराम से खड़ा है और गाँव वालों की तरफ़ देख कर ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा है |

इस पर गाँव वालों को और गुस्सा आया | उन सभी ने चरवाहे को खूब खरी-खोटी सुनाई मगर चरवाहे को तब भी अक्ल न आई | उसने फिर दो-तीन बार ऐसा हीं किया, जिसकी वजह से अब गाँव वालों का चरवाहे की बात से भरोसा उठ गया |

एक दिन गाँव वाले अपने खेतों में काम कर रहे थे और उन्हें पुनः चरवाहे के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी | बचाओ, बचाओ, भेड़िया आया! भेड़िया आया! मगर इस बार किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया |

सभी आपस में बात करने लगे कि इसका तो काम ही है ऐसे हीं मज़ाक करना | चरवाहा लगातार चिल्ला रहा था – अरे कोई तो आओ, मेरी सहायता करो, इस भेड़िए को भगाओ मगर इस बार कोई भी उसकी सहायता करने नहीं पहुँचा |

चरवाहा चिल्लाता रह गया मगर गाँव वाले नहीं गए और भेड़िया उसकी कई भेड़ों को खा गया | यह सब देख चरवाहा रोने लगा |

जब देर रात तक चरवाहा घर नहीं आया, तो गाँव वाले उसे ढूँढते के लिए जंगल पहुँचे | वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि चरवाहा बैठ कर रो रहा था |

चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने गाँव वालों से माँफ़ी माँगी | चरवाहा बोला – मुझे माफ कर दो भाइयों, मैंने झूठ बोल कर बहुत बड़ी गलती कर दी | मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था | आगे से इस तरह का कोई मजाक नहीं करूँगा |

नैतिक शिक्षा – झूठ बोलने वालों पर भरोसा करना मुश्किल होता है, इसलिए हमें हमेशा सच्चा रहना चाहिए |


03. दो मित्र और भालू की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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किसी गाँव में दो लड़के रहते थे | एक लड़के का नाम राम तो दूसरे लड़के का नाम श्याम था | उन दोनों लड़को में बहुत हीं गहरी दोस्ती थी | उनकी दोस्ती की मिसाल पूरे गाँव में दिया जाता था |

सभी लोग कहते थे कि दोस्ती हो तो इनकी दोस्ती जैसी | एक दिन दोनों को अपने गाँव से किसी दूसरे गाँव जाना था | वह दोनों साथ में जाने लगे |

उस रास्ते में एक जंगल पड़ता था | वह जंगल के रास्ते से जा रहे थे तब तक उन्होंने अचानक एक भालु को सामने से आते हुए देखा | अब वे सोचने लगे कि क्या करे?

श्याम खुद को भालू से बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया मगर राम को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था | उसने श्याम से मदद माँगी मगर श्याम ने मदद करने से मना कर दिया | अचानक राम को याद आया कि भालू मरे हुए लोगों को नहीं खाते |

राम जमीन पर सोकर अपने साँस को रोक लिया | वह जमीन पर इस तरह से सोया था कि जैसे वह मर चुका है | भालू राहुल के पास आकर राहुल को सूंघने लगा मगर उसने राम को कुछ किए बिना वहाँ से चला गया |

उसे लगा कि यह मर चुका है | भालू के जाने के बाद श्याम पेड़ से नीचे उतरा | श्याम ने राम से पूछा – भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था? तो राम ने कहा कि भालू कह रहा था कि किसी दोस्त पर भरोसा मत करना |

नैतिक शिक्षा – सच्चा मित्र वहीं होता है, जो मुसीबत के समय साथ देता है |


04. आलसी गधे की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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एक व्यापारी के पास एक गधा था | वह बहुत आलसी तथा चालाक था | एक दिन उसके मालिक ने बाजार जाकर कुछ नमक बेचने की सोची | वह अपने गधे की पीठ पर नमक का एक बड़ा सा गट्ठर रखकर बाजार की ओर चल पड़ा |

जैसे हीं वे दोनों रास्ते में नदी को पार करने लगे कि अचानक गधे का पैर फिसल गया और वह नदी में गिर पड़ा | गधे को चोट तो नहीं लगी पर खड़े होने पर उसे ऐसा लगा कि उसकी पीठ पर रखे नमक की बोरी का बोझ कम हो गया है |

दूसरे दिन गधा फिर से नमक से भरा बोरा लेकर चल दिया | अब वह जानता था कि उसको क्या करना है ? गधे को अब अपनी पीठ पर लादा बोझ कम करना था | अतः जब गधा और उसका मालिक नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जानबूझकर नदी में फिसल कर गिर पड़ा |

इस बार फिर से उसे अपनी कमर पर रखे नमक का बोझ कम लगने लगा है, ठीक हुआ | गधे के मालिक ने उसकी चालाकी पहचान लिया | उसको बहुत क्रोध आया क्योंकि उसके नमक के बोरे में से काफी नमक बह गया था |

उसने गधे को सबक सिखाना चाहा | तीसरे दिन गधे का मालिक गधे की पीठ पर रुई से भरा बोरा रखकर बाज़ार चल पड़ा | गधे ने सोचा कि फिर से उसको अपनी चाल चलनी चाहिए |

जब वे दोनों नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जानबूझकर नदी में फिसल गया ताकि उसकी कमर पर रखा बोझ कम हो जाए परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ | उसकी कमर पर रखे बोरे में भरी रुई ने अपने अंदर पानी सोख लिया और रुई और भारी हो गया |

गधे को तो अब चलना हीं था परंतु अब गधे को समझ आ गया था कि यदि हम चालाकी करके काम को टालते हैं तो हम और भी अधिक परेशानी या संकट में फँस सकते हैं |

नैतिक शिक्षा – बुरा करने वालों के साथ हमेशा बुरा हीं होता है |


05. कौआ और लोमड़ी की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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एक समय की बात है | एक भूखा कौआ खाने की तलाश में यहाँ – वहाँ भटक रहा था तभी उसे एक सड़क पर एक रोटी मिली |

उसने उस रोटी को अपनी चोंच से उठाया और दूर जंगल में जाकर एक पेड़ पर बैठकर खाने लगा | उसी समय एक लोमड़ी उसके पास आई | लोमड़ी को बहुत जोरों से भूख लगी थी और उसने कौआ के मुँह में रोटी देखकर यह सोचा कि उस रोटी को वह खाएगी |

यह विचार कर उस लोमड़ी ने कौवा से कहा – अरे कौआ ! आज तुम तो बहुत हीं अच्छे दिख रहे हो और मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा गाते हो | क्या तुम मुझे गाकर सुनाओगे ? मैं तुम्हारा गाना सुनने के लिए तरस रही हूँ |

कौआ अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हुआ और वह गाना गाने के लिए सोचने लगा मगर गाना गाने से पहले उसके दिमाग में विचार आया कि अगर वह गाना गाएगा तो उसके मुँह की रोटी नीचे गिर जाएगी और फिर लोमड़ी उसे खा जाएगी इसलिए कौए ने रोटी को अपने पैर के नीचे दबाया और गाना गाने लगा |

कौए के ऐसा करने पर लोमड़ी को समझ में आ गया कि उसकी तरकीब काम नहीं कर रही है तो उसने दूसरी तरकीब आज़माई |

उसने कौए से कहा – अरे वाह ! कितना मधुर गाना गाते हो | मैंने सुना है कि तुम नाचते भी बहुत अच्छा हो, क्या तुम मुझे नाच कर दिखाओगे ?

अपनी इतनी ज़्यादा तारीफ़ सुनकर कौए को और भी ज़्यादा खुशी हुई | ख़ुशी के मारे वह यह भी भूल गया कि उसके पैर के नीचे रोटी है | कौआ नाचने लगा |

जैसे हीं कौए ने नाचने के लिए अपने दोनों पैर उठाए, रोटी नीचे गिर गई | तुरंत हीं लोमड़ी उस रोटी को खा गया औए कौआ मुँह देखता रह गया | अब कौए को समझ आया कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही थी | 

नैतिक शिक्षा – अपनी झूठी तारीफ सुनकर हमें खुश नहीं होना चाहिए |


06. चींटी और टिड्डा की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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एक बार की बात है | गर्मी का मौसम था और एक चींटी कड़ी मेहनत से अपने लिए अनाज जुटा रही थी | वह सोच रही थी कि धूप तेज होने से पहले क्यों न अपना काम पूरा कर लिया जाए |

चींटी कई दिनों से अपने काम में जुटी थी | वह प्रतिदिन खेत से उठाकर दाने अपने बिल में जमा करती थी | वहीं, पास में ही एक टिड्डा रहता था | वह मस्ती में वह नाच रहा था और गाने गाकर जिंदगी के मजे ले रहा था |

पसीने से लथपथ चींटी अनाज ढोते-ढोते थक चुकी थी | पीठ पर अनाज लेकर चींटी बिल की ओर जा रही थी, तभी टिड्डा फुदककर उसके सामने आकर बोला, प्यारी चींटी! इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? आओ मिलकर मजे करें |

चींटी ने टिड्डे की बातों को नजरअंदाज कर खेत से उठाकर एक-एक दाना अपने बिल में जमा करती रही | मस्ती में डूबा टिड्डा चींटी को देख हँसकर उसका मजाक उड़ाता |

उछल-कूद कर उसके रास्ते में आता और कहता, प्यारी चींटी! आओ मेरा गाना सुनो | कितना अच्छा और सुहाना मौसम है, क्यों मेहनत करके इस खूबसूरत दिन को बर्बाद कर रही हो?

टिड्डा की ऐसी हरकतों से चींटी परेशान हो गई | उसने समझाते हुए कहा, सुनो टिड्डा! ठंड का मौसम कुछ दिन बाद हीं आने वाला है तो बहुत बर्फ गिरेगी, उस समय कहीं पर भी अनाज नहीं मिलेगा | मेरी सलाह मानो और अपने लिए खाने का इंतजाम कर लो |

धीरे-धीरे कुछ दिन बाद गर्मी का मौसम खत्म हो गया | मस्ती में डूबे टिड्डे को एहसास हीं नहीं हुआ कि गर्मी कब खत्म हो गई | बरसात के बाद ठंड आ गई | कोहरे की वजह से कभी कभी सूरज के दर्शन हो रहे थे |

टिड्डे ने तो अपने खाने के लिए बिल्कुल भी अनाज नहीं जुटाया था | हर ओर बर्फ की मोटी चादर पड़ी थी | टिड्डा भूख से तड़पने लगा |

टिड्डे के पास ठंड से बचने का भी इंतजाम नहीं था तभी उसकी नजर चींटी पर पड़ी | चींटी अपने बिल में मजे से जमा किए हुए अनाज खा रही थी |

तब जाकर टिड्डे को एहसास हुआ कि समय बर्बाद करने का उसे फल मिल चुका है | भूख और ठंड से तड़पते टिड्डे की फिर चींटी ने मदद की |

चींटी ने टिड्डा खाने के लिए उसे कुछ अनाज दिए | चींटी ने ठंड से बचने के लिए खूब घास-फूस जुटाए थे | उसी से टिड्डे को भी अपना घर बनाने के लिए कहा |

नैतिक शिक्षा – अपने काम को पूरी मेहनत और लगन से करनी चाहिए |


07. चींटी और कबूतर की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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भीषण गर्मी के दिनों में एक चींटी पानी की तलाश में इधर-उधर घूम रही थी | कुछ देर घूमने के बाद उसने एक नदी देखी और उसे देखकर प्रसन्न हुई | वह पानी पीने के लिए एक पत्थर पर चढ़ गई मगर वह फिसल कर नदी में जा गिरी |

वह पानी में डूबने लगी तो पास के पेड़ पर बैठे एक कबूतर ने उसकी मदद की | चींटी को संकट में देखकर कबूतर ने तुरंत एक पत्ता पानी में चींटी के आगे गिरा दिया |

चींटी पत्ते की ओर बढ़ी और उस पर चढ़ गई | फिर कबूतर ने पत्ते को पानी से बाहर निकाला और जमीन पर लाकर रख दिया |

इस तरह चींटी की जान बच गई और वह हमेशा कबूतर का एहसान मानती रही | चींटी और कबूतर बहुत अच्छे दोस्त बन गए और वे बड़ी खुशी से रहा करते |

कुछ समय बाद एक दिन जंगल में एक शिकारी आया | उसने पेड़ पर बैठे सुंदर कबूतर को देखा और अपनी बंदूक से कबूतर पर निशाना साधा | 

शिकारी को कबूतर पर निशाना साधे देख चींटी तुरंत जाकर शिकारी के पैरों में जोर से काटी | शिकारी को दर्द हुआ और उसके हाथ से बंदूक गिर गई | कबूतर शिकारी की आवाज सुनकर वहाँ से उड़ गया | इस तरह कबूतर की जान बच गई |

नैतिक शिक्षा – कहानी से सीख – कोई भी अच्छा काम व्यर्थ नहीं जाता |


08. चूहा और बिल्ली की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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एक बिल्ली थी और वो बहुत हीं चालाक थी | उसकी इसी चालाकी और चौकसी को देखकर चूहे भी सावधान हो गए और अब बिल्ली चूहों को नहीं पकड़ नहीं पा रही थी | एक समय ऐसा आया कि बिल्ली भूख के मारे तड़पने लगी |

एक भी चूहा उसके हाथ नहीं आता था क्योंकि वो उसकी आहट सुनते हीं तेज़ी से भागकर अपने बिल में छुप जाते थे | अपनी भूख मिटाने के लिए बिल्ली ने योजना बनाई |

वो एक टेबल पर उल्टी लेट गई | उसने ऐसा इसलिए किया कि सभी चूहों को यह लगे कि वो मर चुकी है |

सभी चूहे बिल्ली को अपने बिल से हीं देख रहे थे | उन्हें पता था कि बिल्ली नाटक कर रही है, इसलिए कोई भी चूहा अपने बिल से बाहर नहीं आया |

मगर बिल्ली ने हार नहीं मानी | वो काफी देर तक उसी टेबल पर उल्टी लेटी रही | अब चूहों को लगने लगा कि बिल्ली मर चुकी है |

वो जश्न मनाते हुए अपने बिल से निकलने लगे | चूहे जैसे हीं टेबल के पास पहुँचे | बिल्ली ने उछलकर दो चूहे पकड़ लिए | इस तरह बिल्ली ने अपने पेट को भर लिया मगर इस घटना के बाद चूहे और भी ज़्यादा सतर्क हो गए |

कुछ समय बाद बिल्ली फिर भूख से तड़पने लगी, क्योंकि चूहे अब बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरतना चाहती थे | इस बार पेट भरने के लिए एक बार फिर बिल्ली को योजना बनाने लगी मगर अब छोटी योजना काम नहीं आने वाली थी |

इस बार बिल्ली ने खुद को पूरे आटे से ढक लिया | चूहे आटा देखकर खाने के लिए आ गए मगर एक बूढ़े चूहे ने उन्हें रोक दिया |

उसने ध्यान से आटा देखा, तो उसे उसमें बिल्ली का आकार दिखने लगा | तभी बूढ़े चूहे ने हल्ला करना शुरू किया |

उसने कहा, “सब अपने बिल में चले जाओ, यहाँ आटे में बिल्ली छुपी है |” उस बूढ़े चूहे की बात सुनकर सब चूहे अपने बिल में वापस घुस गए |

जब बहुत देर तक एक भी चूहा बिल्ली के पास नहीं पहुँचा, तब बिल्ली थककर वहाँ से उठ गई | इस तरह बूढ़े चूहे ने अपने अनुभव से सारे चूहों की जान बचा ली |

नैतिक शिक्षा – इस कहानी से यह सीख मिलती है कि बुद्धि का इस्तेमाल करके धोखे से बचा जा सकता है |


09. हाथी और दर्ज़ी की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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गाँव रत्नापुर में एक प्राचीन मंदिर था | उस मंदिर में प्रतिदिन एक पुजारी पूजा-पाठ करता था | पुजारी के पास एक हाथी था, जिसे वो अपने साथ प्रतिदिन मंदिर लेकर जाता था |

सभी गाँव के लोग हाथी को बहुत पसंद करते थे | हाथी भी मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं का खूब स्वागत किया करता था | सुबह पूजा करने के बाद पुजारी अपने हाथी को तालाब में ले जाकर नहलाया करता था |

प्रतिदिन हाथी नहाने के बाद घर लौटते वक्त एक दर्ज़ी की दुकान पर रुकता था | दर्ज़ी भी प्रतिदिन हाथी को प्यार से एक केला खिलाता था | हाथी केला खाने के बाद अपनी सूँड से दर्ज़ी को नमस्ते करके चला जाता था |

ये सब हाथी और पुजारी की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का एक हिस्सा था | एक दिन हाथी जब दर्ज़ी की दुकान पर केला खाने के लिए रुका, तो दर्ज़ी को शरारत करने का दिल हुआ |

उसने हाथी को केला देने के बाद अपने हाथ में सुई रख ली | जैसे हीं हाथी ने उसे नमस्ते किया, दर्ज़ी ने उसकी सूँड पर सुई चुभा दी |

सुई चुभते हीं हाथी ज़ोर से चिंघाड़ते हुए करहाने लगा | दर्ज़ी ने हाथी के दर्द का खूब मज़ाक़ उड़ाया और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा |

पुजारी को पता नहीं चला कि क्या हुआ | वो हाथी को सहलाते हुए अपने घर लेकर चला गया | अगले दिन फिर पुजारी और हाथी तालाब से लौटकर आ रहे थे |

पुजारी कुछ दूर रुककर लोगों से बात करने लगा | हाथी रोज़ की तरह दर्ज़ी की दुकान पर रुक गया |

आज हाथी ने अपने सूँड में कीचड़ भर लिया था | दर्ज़ी अपनी दुकान में बैठकर कपड़ों की सिलाई कर रहा था | जैसे हीं दर्ज़ी ने हाथी को देखा, वैसे हीं हाथी ने उसकी पूरी दुकान में कीचड़ फेंक दिया |

उस कीचड़ में उसकी दुकान के सीले हुए सारे कपड़े ख़राब हो गए | यह सब देखकर दर्ज़ी समझ गया कि मैंने कल जो किया था, उसी का दण्ड हाथी ने मुझे आज दिया है |

दर्ज़ी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो हाथी के पास भागकर गया और उसने हाथी से माफ़ी माँगी | 

हाथी ने दर्ज़ी की तरफ देखा और अपनी सूँड को हवा में लहराते हुए वहाँ से चला गया | दर्ज़ी को बहुत बुरा लग रहा था |

उसने अपने मस्ती के चक्कर में एक अच्छा दोस्त हाथी खो दिया था | उस दिन से दर्ज़ी ने ठान ली कि वो किसी का भी मज़ाक़ नहीं उड़ाएगा |

नैतिक शिक्षा – इस कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी के साथ भी बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए |


10. हाथी और रस्सी की कहानी | Top 10 Moral Stories in Hindi

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एक दिन एक आदमी हाथियों के शिविर के पास से गुजर रहा था | नजदीक से देखने पर वह हैरान हो गया कि इन हाथियों को न तो पिंजरों में रखा गया था और न हीं किन्हीं जंजीरों से बांधा गया था |

हाथी इसलिए नहीं भाग पा रहे थे क्योंकि उनके पाँव एक पतली रस्सी के सहारे एक साधारण खंभे से बंधे थे | उस आदमी के मन में यह सवाल उठा कि हाथी इस रस्सी को तोड़ने का प्रयास क्यों नहीं कर रहे हैं |

इसके बारे में उसने प्रशिक्षक ने पूछा | इस पर प्रशिक्षक ने जवाब दिया – हाथी जब बच्चे होते हैं, हम उस समय इस प्रणाली का उपयोग करते हैं मगर उस उम्र में रस्सी इतनी मजबूत होती है कि वो उसे तोड़ नहीं पाते हैं | 

जैसे जैसे वो बड़े होते हैं | उन्हें यह विश्वास होने लगता है कि हम कभी इस रस्सी को तोड़ नहीं पाएँगे | यहीं विश्वास उन्हें हमेशा के लिए बंधन से मुक्त नहीं होने देता |

नैतिक शिक्षा – हमें स्वयं पर भरोसा रखना चाहिए और किसी भी समस्या को हल करने की कोशिश करनी चाहिए |